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Showing posts from 2020

ज़िद्द और आईना

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तो मैं "ज़िद्द" के साथ चला जा रहा था । हम काफ़ी समय से साथ चल रहे थे, शायद कुछ साल हो चुके थे । ये जो साल हमने साथ गुज़ारे थे वो कुछ ज्यादा ही लम्बे थे, हाँ मतलब इस सफर की शुरुवात मैंने और "ज़िद्द" ने साथ ही की थी मगर अब ऐसा लगता था कि ये सफर खत्म होने का नाम ही नहीं लेता । जब सफर शुरू हुआ था तब तो हम बहुत करीब थे, एक दूजे से बहुत जुड़े जुड़े से थे हम । और आज, कुछ साल बीत जाने के बाद, "ज़िद्द" तो जैसे कुछ बोलती ही नहीं । बस गुम-सुम सी है साथ। उसका साथ लाज़मी था क्युकि उसने मेरा हाथ पकड़ रखा था । सफर शुरू हुआ था एक मंज़िल के लिए, कि एक दिन इसी रस्ते पर चलते चलते हमे वो मंज़िल हासिल होगी । मेरा मानना था कि वक़्त लगेगा हमे, पर अगर हमने धीरज रखा तो मंज़िल का मिलना उतना ही लाज़मी था जितना रात का सुबह से मिलना होता है । तो बस, "ज़िद्द" ने मेरा हाथ थामा और हम चल दिए, एक ऐसे रस्ते पर जिसका कोई अंदाज़ा नहीं था मुझे। एक ऐसे रस्ते पर जिसका कोई नाप नहीं था मेरे पास, और ना ही अंदाज़ा था उस पर आने वाले मोड़ों का । खैर हौसला बहुत था क्युकि "ज़िद्द" ने कभी मना नहीं किया

Last Wish of an Old Blind Lady

In your busy life, if you ever get time, Then please visit me. Please visit me And talk for hours. It had  been  very Long  since  I  last  talked  to anyone. Come and visit me,  but  not  with Heavy heart and emotions  f pity. And never  ever  tell  me  of what You feel about this old blind lady. Never question about how I lived And how I managed  my  life. Its   been   good,   you   see ?! Reason ?!  I  am  still  alive !! Come dear, sit nearer and ask Not about struggling ventures. But ask  about tasting sounds  And  all  sensing  adventures. Before  I  am alone again, Here  is   my  wish  - last. Bury  me   at   the  center, Unlike my  cornered past.

South diary

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" Most people... are like a falli ng leaf that drifts and turns in the air, flutters, and finally falls to the ground. " Hermann Hesse " And that was a good movie", said Litesh coyly as we head out for the exit in the PVR mall. And we continued to talk about the plot until we were left with the only roof, the pitch-black sky. We stood there for a moment to just embrace the beauty( I mean the city ! )    You can have an eloquent view of the Vijayawada city, Bhavanipuram Island and the river Krishna from the Kanaka Durga Temple that relaxes on the top of the hill near the banks of the magnificent river( Damn magnificent ) The city is still spreading , laying its hands to the farthest corners that are under its reach. She is merciless with her scorching heat, but when the night falls she turns calm. If you are willing, you could hear her breath. And if you are really close to her, you could even feel her beat. We did not know the city, especially t

मरघट

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मणिकर्णिका घाट  माँगा तो सुकून था पर मिला वो ना था, हक़ीक़त भली थी जो ख्वाब पूरा ना था । लहरों से झुनझने नैया ले कर कूद गए, किनारों से दूर चूकि ये अपना ना था । ज़मीनों की तलाश में एक साहिल पर उतर गए, यहाँ मरघट की ताप थी और पीछे रास्ता ना था । कई रात गुज़ारीं हैं ठंड में ठिठुर गए, आज चिता में आग है पास जाड़ा ना था । भोर होगी तब सोचेंगे कहाँ जाएँ, आज फर्श टटोल लो कल ये भी ना था । मानो अँधेरा कहता है रुक जा जी ले, जो चाहता है वो लकीरों में लिखा ना था । मोहोब्बत हाथ एसे थाम कि लकीरें मिट जाएँ, आखिर तक़दीर जानले 'फ़क़ीर' गुलाम ना था । 

Will thou love me so?!

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Love me not for who I was, Or for who I shall be. Love, Love me for who I am. I ain't perfect, nor I can be. I- Shall mess, I might fail. Love, Dare to love real me. I am strong, so shall I be. If I shatter and fall, Love, Love the broken me. Love, I shall protect and- I Shall support. All, Love, Standing by thee. I shall love thee with all my love. But, Love, will thou love me so?!

बून्द

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कुछ ख़्वाब हैं उस कब्र में, जो कब्र अब तक खुदी नहीं, ज़िद्दी लपट हूँ उस आग की, जो आग अभी बुझी नहीं । खैरियत में पूछ लो, खैफियत हर जान की, पसीने में खून है, ये ज़िदगी ईमान की । हौसलें हैं चाँद पर, कि चाँदनी भीगी नहीं, हथेली है आग पर, और बर्फ भी पिघली नहीं । भीड़ की हाहाकार में एक वीर की अब खोज है, मिल गया तो "राम", नही तो "सत्य है" का शोर है । अब उम्र हुई उस कलि की, जो फूल अभी तक बनी नहीं, खैर वो अराली की कलि है जो देव पर चढ़ती नहीं । बरखा की एक बून्द है, जो धरा पर बिखरी नहीं, चाँदनी में ओस बन, वो रेत में लिपटी नहीं । - ---X----