मरघट
हक़ीक़त भली थी जो ख्वाब पूरा ना था ।
लहरों से झुनझने नैया ले कर कूद गए,
किनारों से दूर चूकि ये अपना ना था ।
ज़मीनों की तलाश में एक साहिल पर उतर गए,
यहाँ मरघट की ताप थी और पीछे रास्ता ना था ।
कई रात गुज़ारीं हैं ठंड में ठिठुर गए,
आज चिता में आग है पास जाड़ा ना था ।
भोर होगी तब सोचेंगे कहाँ जाएँ,
आज फर्श टटोल लो कल ये भी ना था ।
मानो अँधेरा कहता है रुक जा जी ले,
जो चाहता है वो लकीरों में लिखा ना था ।
मोहोब्बत हाथ एसे थाम कि लकीरें मिट जाएँ,
आखिर तक़दीर जानले 'फ़क़ीर' गुलाम ना था ।
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