बून्द
ज़िद्दी लपट हूँ उस आग की, जो आग अभी बुझी नहीं ।
खैरियत में पूछ लो, खैफियत हर जान की,
पसीने में खून है, ये ज़िदगी ईमान की ।
हौसलें हैं चाँद पर, कि चाँदनी भीगी नहीं,
हथेली है आग पर, और बर्फ भी पिघली नहीं ।
भीड़ की हाहाकार में एक वीर की अब खोज है,
मिल गया तो "राम", नही तो "सत्य है" का शोर है ।
अब उम्र हुई उस कलि की, जो फूल अभी तक बनी नहीं,
खैर वो अराली की कलि है जो देव पर चढ़ती नहीं ।
बरखा की एक बून्द है, जो धरा पर बिखरी नहीं,
चाँदनी में ओस बन, वो रेत में लिपटी नहीं ।
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खूबसूरत💖
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